कवि वर श्री राम चंद्र शर्मा प्रदीप जी
होता है अस्त यह . प्रखर रवि । होगा ना अस्त यह दीप कभी ॥
दिग दिगंत, युग युग भासित ,इस प्रदीप्त सविता की सवि ॥
वह लघु ग्राम वड नगर हुआ ,यह होनी ही थी उसकी भवि ॥
यह नगर बड़ा या कवि बड़ा ,अब सोच रहे हैं आज सभी ॥
हो गया सुशोभित औदीच्य बंधु, वर्ष 90 का अंक देखा जो अभी ॥
धर्मेंद्र धन्य, मनमोहन जी , डॉ . ओम ठाकर हुए तभी ।
कहता है '' व्यास '' हो हर अंक खास। करते हैं आस ,ज्ञाति बंधु जभी॥
डॉ .ओ.पी.व्यास गुना म .प्र.