भर्तृहरी शतक ...काव्यानुवाद
केवल ब्रह्म का ही चिंतन करना चाहिए।
चिंतन से उसके लाभ क्या जो वस्तु मिथ्या रूप है।
चिंतन करो उस ब्रह्म का , जो परम ज्योति स्वरूप है॥
अंत में यह भुवन भोग , इस ब्रह्म में ही लीन हो,
आश्रित सभी हैं ब्रह्म के , चाहे कृपण आधीन हों ॥
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