(419 ) ( 99 .2 ) रे मूढ़ मनुज तू यौवन के , मद में क्यों इतना ग़ाफ़िल है |
भौतिक साधन की प्राप्ति हेतु , फिर रहा बना तू पागल है ||
यह यौवन क्षण भंगुर मानव , बुल बुला है पानी का जैसे |
सारी विभूतियाँ अस्थिर हैं , तूने स्थिर मानी कैंसे ||
तू बैठा है यम डाढ बीच ,ना जाने कब चब जाएगा |
इस काल बली की डाढ़ों से , तेरा ना चिन्ह बच पाएगा ||
तू समझ रहा है इस सबको ,परलोक की पर कोई फ़िक्र नहीं |
तेरी जबान पर रे मूरख , क्यों शिव के नाम का जिक्र नहीं ||
भर्तृहरि .[ 419 ] [ 99..२ ].डॉ.ओ.पी.व्यास
11. 6. 1997 ......................................................................................................................................