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24 मार्च 2018

[ 411 ] .. श्लोक क्र. .. [ 95 ] ... सम रहते शत्रु ,मित्रों में , स्वयं अकिंचन कहते हैं |दान , दया जिन के मन में है ,शान्त दान्त जो रहते हैं || डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 411 ]
...श्लोक क्र. ..[ 95 ] ...
सम रहते जो शत्रु , मित्र में ,स्वयं  अकिंचन कहते हैं |
                           दान ,दया  जिनके  मन  में है , शांत , दान्त जो रहते हैं ||..
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ. ओ.पी.व्यास ..
सम रहते जो शत्रु , मित्र में , स्वयं  अकिंचन कहते हैं |
दान , दया  जिनके  मन में है , शांत , दान्त जो रहते हैं ||
रखते जो इन्द्रिय संयम , यम और नियम सब करते हैं |
जो  रहते  संतुष्ट सदा , सुख   दुःख को सम हो सहते हैं ||
सभी   दिशाएं   सुख मय उनको , सुख धारा में  बहते हैं |
ऐंसे साधु, देव तुल्य बहुत अल्प जग में हमको मिलते हैं ||

[ दान्त याने इन्द्रिय दमन करने वाले ]

भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास

पूज्य पिताजी श्रीमान कँवर लाल भंवर लाल भट्ट जी दफ्तर दार सब भदौरा जागीर  प्रधान अध्यापक , ,माता जी श्रीमती राम कुंवर बाई व्यास प्रधान अध्यापिका

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद