[ 410 ]..
श्लोक क्र. [ 94 ]..
गर्भ वास में सिकुड़े सिमटे , मल और मूत्र में रहता है |
यौवन में प्रिय का वियोग , कष्ट अधिक ही देता है ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
गर्भ वास में सिकुड़े , सिमटे , मल और मूत्र में रहता है |
यौवन में प्रिय का वियोग , कष्ट अधिक ही देता है ||
वृद्ध हुए अब , शिथिल इन्द्रियां ,जग बुढ्ढा कह हँसता है |
अरे मनुष्य , बोल अब तू,क्या कभी तुझे सुख मिलता है ||
श्लोक क्र. [ 94 ]
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श्लोक क्र. [ 94 ]..
गर्भ वास में सिकुड़े सिमटे , मल और मूत्र में रहता है |
यौवन में प्रिय का वियोग , कष्ट अधिक ही देता है ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास ..
गर्भ वास में सिकुड़े , सिमटे , मल और मूत्र में रहता है |
यौवन में प्रिय का वियोग , कष्ट अधिक ही देता है ||
वृद्ध हुए अब , शिथिल इन्द्रियां ,जग बुढ्ढा कह हँसता है |
अरे मनुष्य , बोल अब तू,क्या कभी तुझे सुख मिलता है ||
श्लोक क्र. [ 94 ]
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