[409 ]..श्लोक क्र .[ 93 ] ..
जब मिलते हैं खाने को ,रुचिकर और मीठे फल |
जब पीने को अति स्वादिष्ट , मिले अमृत जल ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवादा,
डॉ.ओ.पी.व्यास
जब मिलते हैं खाने को ,रुचिकर और मीठे फल |
जब पीने को अति स्वादिष्ट मिले अमृत जल ||
जब कर सकते भूमि पर, हम सहज शयन को |
जब वल्कल के, सहज वस्त्र को ,आप पहिन लो ||
तब धन मद में चूर ,और उन्मत्त जो दुर्जन |
उन अविनय दुर्जन में करें, नष्ट क्यों जीवन ||
श्लोक क्र. [ 93 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
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जब मिलते हैं खाने को ,रुचिकर और मीठे फल |
जब पीने को अति स्वादिष्ट , मिले अमृत जल ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवादा,
डॉ.ओ.पी.व्यास
जब मिलते हैं खाने को ,रुचिकर और मीठे फल |
जब पीने को अति स्वादिष्ट मिले अमृत जल ||
जब कर सकते भूमि पर, हम सहज शयन को |
जब वल्कल के, सहज वस्त्र को ,आप पहिन लो ||
तब धन मद में चूर ,और उन्मत्त जो दुर्जन |
उन अविनय दुर्जन में करें, नष्ट क्यों जीवन ||
श्लोक क्र. [ 93 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक ,
हिंदी काव्य भावानुवाद ,
डॉ.ओ.पी.व्यास
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