[ 374 ]
श्लोक क्र. [ 62 ]
हो भक्ति भूत भावन शिव की,
भय ना ही जन्म मरण उर हो |
स्नेह बन्धुओं का ना हो ,
संसर्ग काम और ना घर हो ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी. व्यास
हो भक्ति भूत भावन शिव की ,
भय ना ही जन्म मरण उर हो |
स्नेह बन्धुओं का ना हो ,
संसर्ग , काम और ना घर हो ||
हो निर्जन वन में ही निवास ,
और ना ही कुछ विकार कर हो |
वैराग्य परम उत्तम इससे ,
फिर कौन मेरे शिव शंकर हो ||
श्लोक क्र .[ 62 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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श्लोक क्र. [ 62 ]
हो भक्ति भूत भावन शिव की,
भय ना ही जन्म मरण उर हो |
स्नेह बन्धुओं का ना हो ,
संसर्ग काम और ना घर हो ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक ..
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी. व्यास
हो भक्ति भूत भावन शिव की ,
भय ना ही जन्म मरण उर हो |
स्नेह बन्धुओं का ना हो ,
संसर्ग , काम और ना घर हो ||
हो निर्जन वन में ही निवास ,
और ना ही कुछ विकार कर हो |
वैराग्य परम उत्तम इससे ,
फिर कौन मेरे शिव शंकर हो ||
श्लोक क्र .[ 62 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्य भावानुवाद
डॉ.ओ.पी.व्यास
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