एक हास्य व्यंग्य- शिक्षा प्रद कविता ..
एक शिक्षा प्रद रचना
बी. के. डॉ.ओ.पी.व्यास
नोट ...यह रचना एक बहुत अच्छी रचना है ब्रह्मा कुमारी आश्रम ज्ञान मुरली पर आधारित है - बी. के . डॉ. ओ.पी. व्यास .
नो दिन भैय्या खूब मनाई , हमने नो दुर्गा |
दसवें दिन दारु को पीकर ,काटे सो मुर्गा ||
[ 1 ]
किया जागरण माताजी का ,
रात रात भर जागे |
ख़ूब लगाई सुंदर झांकी ,
काफ़ी दोड़े भागे ||
कठिन किये सब व्रत माता के
,माँ की ममता लागी |
चप्पल जूते त्याग दिए सब ,
ऐंसी भक्ति जागी ||
नो दिन के इस भक्ति भाव से ,
चाह रहे हम सुरगा [ स्वर्ग ] ||
नो दिन भैय्या ...
दसवें दिन ..
[ २ ]
काफ़ी मंहगी मूरत लाए ,
उसको ख़ूब सजाया |
बड़े बड़े पांडाल बनाये ,
ख़ूब लुटाई माया ||
किया जागरण माता जी का ,
रात दिवस गुण गाया |
भक्ति भाव में गहरे डूबे ,
नशा देवी का छाया ||
पर अब हम क्या करने लग गये ,
भक्त और सब गुरगा |
नौ दिन ..
दसवें दिन ...
[ 3 ]
काश हमेशा को जग जाती ,
यह देवी ज्वाला |
देवी की शक्ति से खुलता
यदि बुद्धि ताला ||
दिव्य द्रष्टि मिल जाती ,
हटता नेत्रों का जाला |
तो तस्वीर और ही होती ,
भक्तों की आला ||
यदि विकार रुपी रावण का,
कर देते भुर्ता |
नौ दिन ..
दसवें दिन ...
[ 4 ]
बकरे बकरी को ना काटते ,
बक बक दूर हटाते |
मैं मैं करते दूर ,
स्व दर्शन चक्र चलाते ||
करते याद जो दिलो जान से ,
दया माता की पाते |
दुर्गा का आव्हाहन कर
दुर्गति का दुर्ग ढहाते ||
दुर्गा माँ की कृपा बरसती ,
क्यों की वह है कर पा |
नौ दिन ...
दसवें दिन ...
[ 5 ]
झांक के भीतर अगर देखते ,
देवी की झांकी |
सूरत वहां नज़र आ जाती ,
देवी की बांकी ||
ख़ुद बन जाते दैवीय मूरत ,
लग जाती टांकी |
ज़र्रे ज़र्रे में दिखतीं फिर ,
तस्वीरें माँ की ||
व्यर्थ बोझ त्यागते उड़ते ,
ज्यों इंदर तुरगा [ देव राज इन्द्र का घोडा ] |
नौ दिन ...
दसवें दिन ..
[ 6 ]
माता बात कहे समझा के ,
ओ मेरे लालो |
करो नहीं तामसी भोजन ,
मत उल्टा खा लो ||
दिव्य गुणों को धारो बच्चो ,
नियमों को पालो |
क्षण में ही देवी माँ की
कृपा को पा लो ||
शव सा जीवन शिव मय कर लो ,
क्यों रहते मुरदा |
नौ दिन ...
दसवें दिन ...
[ 7 ]
है संदेश यही देवी का ,
भैय्या हम जग जाएँ |
दुष्ट पृवृत्तिओं के पिशाच को ,
जल्दी दूर भगाएं ||
सच्ची भक्ति और धारणा ,
हम देवी की पायें |
नौ दुर्गा ही नहीं बरस भर ,
जय माता दी गाएँ ||
कहें व्यास कवि ,
यदि करें ना ऐंसा ,फ़ैल होंय गुर्दा |
नौ दिन भैय्या ख़ूब मनाई ,
हमने नौ दुर्गा |
दसवें दिन दारू को पीकर ,
काटें क्यों ? मुर्गा ||
जय दुर्गा माँ की |
एक शिक्षा प्रद रचना
बी. के. डॉ.ओ.पी.व्यास
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