[ 318 ] श्लोक क्र.[ 15 ] भर्तृहरि वैराग्य शतक ...सूर्य चन्द्र की कितनी दुर्गति , दोंनों पर केवल एक वस्त्र |..
काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास
सूर्य चन्द्र की कितनी दुर्गति ,
दोंनों पर केवल एक वस्त्र |
वह ही अम्बर का एक टुकड़ा,
रात में चंदा ओढ़े यत्र ||
और उसी अम्बर को ओढ़े,
भानु देखिये दिन में तत्र |
यों तो कितने तेजस्वी हैं ,
सूर्य , शशि दोंनो नक्षत्र ||
पर दिन रात घूमना पड़ता ,
कहीं ना जा सकते अन्यत्र |
पराधीन की यही दशा तो ,
पाई जाती है सर्वत्र ||
इसीलिए संतोष पूर्वक ,
कर लो पूरा जीवन सत्र |
कोई पूर्ण सुखी ना जग में ,
कोई ना राजा एक छत्र ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र.[ 15 ]
काव्यानुवाद डॉ. ओ.पी.व्यास
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काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास
सूर्य चन्द्र की कितनी दुर्गति ,
दोंनों पर केवल एक वस्त्र |
वह ही अम्बर का एक टुकड़ा,
रात में चंदा ओढ़े यत्र ||
और उसी अम्बर को ओढ़े,
भानु देखिये दिन में तत्र |
यों तो कितने तेजस्वी हैं ,
सूर्य , शशि दोंनो नक्षत्र ||
पर दिन रात घूमना पड़ता ,
कहीं ना जा सकते अन्यत्र |
पराधीन की यही दशा तो ,
पाई जाती है सर्वत्र ||
इसीलिए संतोष पूर्वक ,
कर लो पूरा जीवन सत्र |
कोई पूर्ण सुखी ना जग में ,
कोई ना राजा एक छत्र ||
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र.[ 15 ]
काव्यानुवाद डॉ. ओ.पी.व्यास
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