[ 317 ] श्लोक क्र.46
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
आज हुआ है प्राप्त ,
बड़े तप का यह फल है |
कौन? बड़ा था किया ,
जो तप हमने था कल है ||
बहुत काल तक ,
तर्क वितर्क विचार किया है |
नहीं समझ आता ,
प्रभु ने जो सु फल दिया है ||
उस तप के ही फल से ,
मिला , स्वछन्द विचरना |
सत्पुरुषों की संगत,
भोजन बिना दीनता करना ||
मन को शान्ति के,
उपशम व्रत रुपी फल वाले |
शास्त्र श्रवण करना ,
मिल गये सब बैठे ठाले ||
सांसारिक भावों में ,
मन्द प्रुवृत्ति मन की |
सब कुछ कैसे प्राप्त ?,
तपस्या किस जीवन की ?||
श्लोक क्र.| [ 46 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
7 / 2 / 1997 शुक्रवार
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भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
आज हुआ है प्राप्त ,
बड़े तप का यह फल है |
कौन? बड़ा था किया ,
जो तप हमने था कल है ||
बहुत काल तक ,
तर्क वितर्क विचार किया है |
नहीं समझ आता ,
प्रभु ने जो सु फल दिया है ||
उस तप के ही फल से ,
मिला , स्वछन्द विचरना |
सत्पुरुषों की संगत,
भोजन बिना दीनता करना ||
मन को शान्ति के,
उपशम व्रत रुपी फल वाले |
शास्त्र श्रवण करना ,
मिल गये सब बैठे ठाले ||
मन्द प्रुवृत्ति मन की |
सब कुछ कैसे प्राप्त ?,
तपस्या किस जीवन की ?||
श्लोक क्र.| [ 46 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद डॉ.ओ.पी.व्यास
7 / 2 / 1997 शुक्रवार