तृष्णा - दूषणम
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र.1 प्रथम काव्यानुवाद
श्लोक क्र.1 प्रथम काव्यानुवाद
हर हर महादेव कई नाम जिनके |
हर हर महादेव ,कई नाम जिनके |
चन्द्र कला हैं , जटाओं में उनके ||
जले काम ऐंसे , जलें जैंसे तिनके |
उर में बसें शिव, दीपक वे बनके ||
मोह तम हटा देते, योगी के मनके |
करें वे सदाशिव , कल्याण जन के ||
यह वैराग्य शतक का प्रथम श्लोक मंगलाष्टक है इसमें महाराजा भर्तृहरि अपने इष्ट देव भगवान शिव की स्तुति कर रहे हैं इस का काव्यानुवाद मैंने एक भजन के रूप में किया है इस भजन को गुना म.प्र के सुप्रसिद्ध कलाकार स्व.श्रीमान रमेश जी नागर ने अनेक वर्ष पूर्व आकाशवाणी शिवपुरी पर सुंदर ढंग से साज बाज सहित प्रस्तुत किया था .
मूल श्लोक
चूड़ोत्तम्सित-चन्द्र -चारु -कलिका -चन्चछिखा -भास्वरो,
लीला -दग्ध -विलोल -काम - शलभ श्रेयो - दशाग्रे स्फुरन |
अन्तह स्फूर्जदपार --मोह -तिमिर -प्राग -भारम्मुच्चाटन,
चेत सद्मनि योगिनाम विजयते ज्ञान प्रदीपो हरः || 1 ||
अर्थ ..जिनका मुख मण्डल जटाओं में आभूषण के रूप में स्थित सुंदर चन्द्र कला की प्रकाशमान किरणों से उद्भासित हैं , जिन्होंने लीला मात्र से चंचल कामदेव -रुपी पतंग को दग्ध किया है ,जो सभी मंगलमय अवस्थाओं के आरम्भ में प्रकट होकर , जीव के चित्त में फैले अपार अन्धकार के समूह को समूल नाश करते हुए , साधकों के चित्त को [ विमल ] ज्ञान -रुपी दीपक से आलोकित करते हैं , वे महादेव शिव योगिओं के ह्रदि मन्दिर में सदा विराजित हैं |