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जब सूर्य कान्त मणि अचेतन ,
पाके सूर्य का ताप |
हो जाती है शीघ्र प्रज्वलित ,
वह तो अपने आप ||
तब तेजस्वी पुरुष सचेतन ,
सह कर के अपमान |
क्यों ना हो जायेंगे क्रोधित ,
क्या वे ना रखें सम्मान ? ||
[ 37 ]
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जब सूर्य कान्त मणि अचेतन ,
पाके सूर्य का ताप |
हो जाती है शीघ्र प्रज्वलित ,
वह तो अपने आप ||
तब तेजस्वी पुरुष सचेतन ,
सह कर के अपमान |
क्यों ना हो जायेंगे क्रोधित ,
क्या वे ना रखें सम्मान ? ||
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