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14 सित॰ 2016

यश रुपी शरीर है , जिनका

कवि प्रशंसा 24....

यश रुपी शरीर है जिनका, कभी ना हों, जो वृद्ध |
कभी मृत्यु का, जिन्हें भय नहीं, कविता को, प्रतिबद्ध ||
अच्छे कर्म करें और जो हों सभी रसों में सिद्ध | 
जय हो | जय हो | ऐंसे कवि की , जो जग में हैं प्रसिद्ध ||


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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद