नव वर्ष
प्रखर सूर्य सा चमक दिखाता आया है नव नर्ष|
विगत दिनों की छाया पर, अब क्यों हो अधिक विमर्श||
[ १ ]
जो गुज़र गया सो गुज़र गया, अब उसको गहरा गाड़ें|
जो भी धूल लगी वस्त्रों पर, उसको उठ कर झाडें||
छोड़ो कल की बात पुरानी, क्यों वे आएं आड़े|
नया सूर्य क्या प्रगति ला रहा, अब भविष्य को ताड़े||
नई प्रगति हो , नई सुमति हो, हो सब का उत्कर्ष|
नई दिशा में बढे विश्व, यह चाहे भारत वर्ष ||
[ २ ]
केवल मात्र हमारी अपनी उन्नति को ना ताकें|
आज विश्व की सभी समस्या, को भी हम सब झांके||
सब का कष्ट दूर होगा तो , अपनी उन्नति आंकें|
विश्व बन्धुत्व का पाठ पढ़ें , तब सुत हैं, भारत माँ के||
खत्म विश्व से हो जाएँ ये, सारे ही संघर्ष|
मेरा तेरा ना हो, सब को, सब कुछ देंय सहर्ष ||
चाह "व्यास" की आज यही है, सभी तरफ हो हर्ष||
प्रखर सूर्य सा चमक दिखाता आया है नव वर्ष |
विगत दिनों की छाया पर, अब क्यों हो अधिक विमर्श ||
[डॉ. ओ. पी. व्यास गुना म.प्र.]
१.१. २०१५ गुरुवार