आते हैं याद वे दिन ...
[डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र. ]
आते हैं याद वे दिन, जब खाते थे, हम हलुआ और परांठा .
और आती थी जब बराई [गन्ना ] , हम चोंखते थे सांटा ..
खा लेते चलते फिरते, अम्मा का जब थे चांटा।
बिना जूतों के दौड़ते थे ,रोते थे जोर से हम ,
अगर लगता था हमें काँटा ..
अगर लगता था हमें काँटा ..
कंकड़ और धाऊ पत्थर से,पैर बहुत छिलते थे .
पर घावों को टिंचर आयोडीन के,स्वाद जब मिलते थे।
फिर दूसरे घावों की तैय्यारी हम करते थे ..
चक्का घुमाने में भी कोई ,अपना नहीं था सानी .
ऊधम बहुत करते थे ,आतीं थीं घर जब नानी ..
प्यारा हमारा बचपन, कितनी मस्ती से हमने काटा .
पुचकार चूम अम्मा ने कई बार हमको डाटा ..
पर ,जब तक रहा वो बचपन ,
पर ,जब तक रहा वो बचपन ,
ऊधम को किया हमने , नहीं एक दिन भी टा टा ..
[ बचपन की यादें ...डॉ.ओ.पी. व्यास गुना म.प्र. ]