पृष्ठ

2 मई 2014

आते हैं याद वे दिन ...डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.

3.5.2014 शनिवार 
आते हैं याद वे दिन ...
[डॉ.ओ.पी.व्यास गुना  म.प्र. ] 


आते हैं याद वे दिन, जब  खाते  थे,  हम हलुआ और परांठा .
और आती थी जब बराई [गन्ना ] , हम चोंखते थे  सांटा ..
खाते थे डांट जब हम , अपने पिताजी की हम ,
खा लेते चलते फिरते, अम्मा का जब थे  चांटा। 
बिना जूतों के दौड़ते  थे ,रोते थे जोर से हम ,
अगर  लगता था  हमें  काँटा ..
कंकड़ और धाऊ पत्थर से,पैर बहुत छिलते  थे .
पर घावों को टिंचर आयोडीन के,स्वाद जब मिलते थे। 
पर एकाध बार में ही ,वे घाव ,सब भरते थे ..
 फिर  दूसरे घावों की तैय्यारी हम करते थे ..
चक्का घुमाने में भी कोई ,अपना नहीं था सानी .
 ऊधम बहुत करते थे ,आतीं थीं घर जब नानी ..
प्यारा हमारा बचपन, कितनी मस्ती से हमने काटा .
पुचकार चूम अम्मा ने कई बार हमको डाटा ..
पर  ,जब तक रहा वो बचपन  ,
  ऊधम को किया हमने ,  नहीं एक दिन भी टा टा ..
[ बचपन की यादें ...डॉ.ओ.पी. व्यास गुना म.प्र. ]  
           
       






भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद