तीन धाम यात्रा - उत्तरा खण्ड यात्रा
कविता .
.डॉ.ओ .पी.व्यास गुना म .प्र.
भाग [1]
एक तरफ पर्वत श्रेणी , एक तरफ है, खाई ।
कदम कदम पर यहाँ है खतरा , चलें संभल के भाई ॥
आसमान से बातें करतीं , पर्वत की ये श्रेणी ।
गहरी खाई में गंगा माँ, ज्यों गौरा की वेणी ॥[चोटी ]
सीढ़ी नुमा हैं खेत यहाँ के , टेढ़े मेढ़े पर्वत ।
खेती जहाँ पहाड़ी करते , देखो उनकी हिम्मत ॥
दो पर्वत के बीच देखिए ,झाँके तीसरा पर्वत ।
जिधर द्रष्टि डालें पहाड़ हैं , नीचे हैं गंगा जी ।
हरा भरा वन और उपवन, पवन बह रही ताजी ॥
टेढ़े मेढ़े मार्गों से बस , चल दी बद्री विशाल ।
ड्राईवर यहाँ के होशयार हैं , करते बड़े कमाल ॥
लड़ना और झगड़ना तो है , उनसे कोसों दूर ।
एक दूजे के सभी सहायक , रहते हैं भरपूर ॥
सड़क कहे सुन भैया , मैं पहाड़ की नागिन ।
जल्दी करेगा औरत , रहना नहीं सुहागिन ॥
देवदारु के व्रक्ष खड़े हैं , अंजलिओं को बांधे ।
मानो कोई ऋषी मुनी , प्रभु साधन को साधे ॥
घोर तपस्या में रत हैं ये , प्रभु भक्ति में लीन ।
सांसारिक दुक्खों से दूर , भव वंधन से क्षीण ॥
और चीड़ के व्रक्ष देखिए, द्र्श्य सुहाने देते ।
मानो प्रक्रति ने सजा दिए काटे छाँटे रेते ॥
क्रमश: