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25 दिस॰ 2012

तीन धाम यात्रा ...उत्तरा खंड यात्रा ...कविता


तीन धाम यात्रा - उत्तरा खण्ड यात्रा
कविता .
.डॉ.ओ .पी.व्यास गुना म .प्र.
भाग [1]
एक  तरफ   पर्वत   श्रेणी , एक   तरफ   है,  खाई ।
कदम कदम पर यहाँ है खतरा , चलें संभल के  भाई ॥
आसमान   से   बातें   करतीं ,  पर्वत   की  ये   श्रेणी ।
गहरी  खाई   में   गंगा   माँ,  ज्यों गौरा  की  वेणी ॥[चोटी ]
सीढ़ी   नुमा   हैं   खेत   यहाँ   के ,  टेढ़े   मेढ़े  पर्वत ।
खेती   जहाँ  पहाड़ी  करते , देखो  उनकी  हिम्मत ॥
दो पर्वत के बीच देखिए ,झाँके तीसरा पर्वत ।
चौथा कनखीओं से देखे , मानो वो है शरमत ॥
जिधर द्रष्टि डालें पहाड़ हैं ,  नीचे हैं गंगा जी ।
हरा भरा वन और उपवन,  पवन बह रही ताजी ॥
टेढ़े मेढ़े मार्गों से बस , चल दी बद्री विशाल ।
ड्राईवर यहाँ के होशयार हैं , करते बड़े कमाल ॥
लड़ना और झगड़ना तो है , उनसे कोसों दूर ।
एक दूजे के सभी सहायक , रहते हैं भरपूर ॥
सड़क कहे  सुन  भैया , मैं पहाड़ की नागिन ।
जल्दी   करेगा औरत  , रहना नहीं सुहागिन ॥
देवदारु के व्रक्ष खड़े हैं , अंजलिओं को बांधे ।
मानो  कोई ऋषी मुनी  , प्रभु साधन को साधे ॥
घोर तपस्या में रत हैं ये , प्रभु भक्ति में लीन ।
सांसारिक दुक्खों से दूर , भव वंधन से क्षीण ॥
और चीड़ के व्रक्ष देखिए, द्र्श्य सुहाने देते ।
मानो प्रक्रति ने सजा दिए  काटे छाँटे रेते ॥
 क्रमश: 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद