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26 दिस॰ 2012

बचपन की यादें

बचपन की यादें


आते हैं याद हमको बचपन के प्यारे दिन |


कितने खुशी भरे थे, थे कितने न्यारे दिन ॥


[ 1 ]


वो सीताफलों को खाना। सराय को वो जाना ।।


तालाब मैं नहाना॥ सुनना टिटहरी गाना ॥


सोन्धे ओर मोटे गुड के, सेवों का प्यारा स्वाद ।


आ जाता मुंह मैं पानी, आ जाते जब वो याद ॥


कंगूरे दार खंभे पै, वो छाछ का बिलोना ।


रबड़ी मलाई खाना ,कथरी का वो बिछोना ॥


सामने लगा हुआ , नीम का वो पेड़ ।


खाते निबोरिओ को बैठे , वहाँ पै ढेढ ॥


कहते हैं लोग जिनको ,कठिन और खारे दिन।


आते हैं याद हमको बचपन के प्यारे दिन।


कितने खुशी भरे थे, थे कितने न्यारे दिन॥


[ 2 ]


आता था जब दशहरा, चलती वहाँ थी तोप।


हाथी पै राजा बैठे, घोड़ों की गूँजें टाप॥


माला गले में पहिने, कुर्बानियों के बकरे।


बाजे तुरही का बजना , वो घूमते थे चकरे॥


अचरज भरे हुए थे, वे सब नटों के खेल।


भाटों की विरदावलियाँ, वो नाचतीं रखेल॥


मेहफिल सजीं हुई थीं, वे शानदार सब।


बैठे सजे धजे थे, वहाँ मानदार सब॥


कविता हमारी सुन कर, राजा का खुश वो होना।


जंगल में जाके आना, और लूट लाना सोना ॥


उन सुनहरे दिनों पै, हमने ये वारे दिन ॥


आते हैं याद हमको ,बचपन के प्यारे दिन।


कितने खुशी भरे थे, कितने न्यारे दिन ॥


[3]


एक म्यूजियम भी वहाँ था,पूरा सजा धजा था।


कमरा वो शेरों के चेहरों से,अटा पटा था ॥


शेरों और तेंदुओं की थीं वहाँ अनेक खालें ।


शेरों के मुख भयानक, उन में भरे मसाले ॥


सुंदर और मखमली कालीन वहाँ बिछे थे ।


दीवारों पर अनेकों, हथियार वहाँ टंगे थे ॥

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद