धूप …
कनाडा प्रकृति चित्रण ...[मार्च माह का हाल ] कविता
नोट - [ कनाडा मेँ कपड़ों से शरीर को बिना ढके धूप मेँ निकालना खतरनाक होता हे।]
कनाडा प्रकृति चित्रण ...[मार्च माह का हाल ] कविता
नोट - [ कनाडा मेँ कपड़ों से शरीर को बिना ढके धूप मेँ निकालना खतरनाक होता हे।]
मृग मरीचिका जैसी धूप यह, चमक दार है निकली ।
मैंने सोचा बाहर घूमूँ, बरफ भी सारी पिघली ॥ [ 1 ]
मगर चला जब थोड़ा बाहर, हो कपड़ो में पैक ।
हाथ पैर सब ठंडे पड़ गए, लगे पैरों में ब्रेक ॥[2]
लगता था यदि ज्यादा घूमा, हो जाऊंगा सुन्न ।
वापिस घर में जल्दी आया, रहा इसी से टन्न ॥[3]
घरों में गरमी लगे है, लें खिड़की से धूप।
बाहर कम ही जाईए, वरना हों स्तूप ॥[4]
धोखा धूप ये दे रही, इसको समझो भाई ।
वरना बिस्तर में पड़े ,करोगे आई आई आई आई ॥
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बहुत देर खोया रहा मैं आसमान को देख, मामूली बदल के टुकड़ों में दिया दिल को फेंक ॥[1]
बहुत देर खोया रहा मैं आसमान को देख, मामूली बदल के टुकड़ों में दिया दिल को फेंक ॥[1]
कल तो हलकी बरफ गिरी थी, फिर हुई अचानक बारिश।
फिर ये आज सब किधर भाग गए, क्या कहीं लगी सिफारिश॥[2]
और कहीं कुछ कम मिला क्या? गए वे वहां बरसने ।
नरम गरम मोसम कर देते, सब लगते हैं हरसने।[3]
फिर वे कहीं पर छिप जाते हैं, सब लग जाते तरसने ।
फिर लो अचानक सूरज आया, हर कोई लगा सरसने।[4]
हम को क्या मालूम, कोन? यह पूरी करे व्यवस्था ।
कहाँ ? से आतीं, ऊर्जा देवी, बदलें सभी अवस्था ॥[5]
इसे मिटाएँ तो प्रभु सोचे , अजी कैसी? कर दी भरती॥[6]
इस सुन्दर पृथ्वी पर हम सब, करें सुंदर ही काम ।
जब हम परमात्मा के पुत्र हैं। क्यों? बट्टा देंय पिता के नाम॥[7]
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