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26 दिस॰ 2012

धूप …
कनाडा प्रकृति चित्रण ...[मार्च माह का हाल ] कविता

नोट -  [ कनाडा मेँ कपड़ों से शरीर को बिना ढके धूप मेँ निकालना खतरनाक होता हे।]

मृग मरीचिका जैसी धूप यह, चमक दार है निकली । 

मैंने सोचा बाहर घूमूँ, बरफ भी सारी पिघली ॥ [ 1 ]

मगर चला जब थोड़ा बाहर, हो कपड़ो में पैक ।

हाथ पैर सब ठंडे पड़ गए, लगे पैरों में ब्रेक ॥[2]

लगता था यदि ज्यादा घूमा, हो जाऊंगा सुन्न ।

वापिस घर में जल्दी आया, रहा इसी से टन्न ॥[3]

घरों में गरमी लगे है, लें खिड़की से धूप।

बाहर कम ही जाईए, वरना हों स्तूप ॥[4]

धोखा धूप ये दे रही, इसको समझो भाई ।

वरना बिस्तर में पड़े ,करोगे आई आई आई आई ॥
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बहुत  देर  खोया  रहा  मैं  आसमान  को  देख,                                                        मामूली  बदल  के  टुकड़ों  में दिया  दिल  को फेंक ॥[1]
    कल तो हलकी बरफ गिरी थी, फिर हुई अचानक बारिश   
 फिर ये आज सब किधर भाग गएक्या कहीं लगी सिफारिश॥[2]
और कहीं कुछ कम मिला क्या? गए वे  वहां  बरसने  
  नरम  गरम  मोसम कर  देतेसब लगते हैं हरसने।[3]
  फिर वे कहीं पर छिप जाते हैंसब लग जाते तरसने  
  फिर लो अचानक सूरज आयाहर कोई लगा सरसने।[4]
 हम को क्या मालूम, कोनयह पूरी करे व्यवस्था 
 कहाँ ? से  आतीं, ऊर्जा  देवीबदलें सभी अवस्था ॥[5]
 हम सब हैंअभिभूतबनाई कितनी ? सुन्दर  धरती।
इसे मिटाएँ तो प्रभु  सोचे , अजी  कैसी?  कर दी भरती॥[6]
 इस सुन्दर पृथ्वी पर हम सबकरें सुंदर ही काम ।
  जब  हम परमात्मा के पुत्र हैं। क्यों? बट्टा देंय पिता के नाम[7]
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद