मरने के बाद पीछे, पीछे , फेंकत चले मखाने || डॉ.ओ.पी.व्यास
हमने ख़ूब करी थी सेवा, मेवा दीं थीं खाने ||
उस मेवा से ही तो बच गये, अब फेंकें वही मखाने ||
धन दौलत जो ख़ूब छोड़, गये हम बच्चों के लाने |
हमें ना कोई चाह है धन की,ये हम को बे माने ।।
फ़ैंक रहे ये दस्सो, पंजो, हम इनको क्या जानें ।।
एक एक बूँद जल को तरसे, अब चले, गया श्राद्ध ,कर वाने ।
(सो फेंकें उसके लाने ||) ( निर्धन के लाने ||) [ 434 ]