(424)
स्वामी विवेकानन्द जी
के
शिकागो भाषण के अंश
कविता में ...डॉ.ओ.पी.व्यास
तुम्हारी छाती वज्र की भुजा फ़ौलाद की हो ।\
स्नायु बिजली के ,उड़ान बाज की हो ।।
तुम सिंह समान भूतल पर विचरो ।
तुम मनुज साहसी हो , कुछ कर गुज़रो ।।
निर्लिप्त बुद्धि जैंसे होता है कमल ।
तुम्हारे विचरण को ही तो ,बना है यह भूतल ।।
स्वामी विवेकानन्द
डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.
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स्वामी विवेकानन्द जी
के
शिकागो भाषण के अंश
कविता में ...डॉ.ओ.पी.व्यास
तुम्हारी छाती वज्र की भुजा फ़ौलाद की हो ।\
स्नायु बिजली के ,उड़ान बाज की हो ।।
तुम सिंह समान भूतल पर विचरो ।
तुम मनुज साहसी हो , कुछ कर गुज़रो ।।
निर्लिप्त बुद्धि जैंसे होता है कमल ।
तुम्हारे विचरण को ही तो ,बना है यह भूतल ।।
स्वामी विवेकानन्द
डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.
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