[ श्लोक क्र. 71 ].
यौवन में काम देव रुपी ,
नेत्रों को हुआ था तिमिर रोग |
.भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास
यौवन में कामदेव रुपी ,
नेत्रों को हुआ था तिमिर रोग |
जिससे विवेक था हुआ नष्ट ,
सम्पूर्ण विश्व दिखा मात्र भोग ||
मिला अब विवेक अंजन सशक्त ,
दूर तिमिर वह रोग हुआ |
द्रष्टि हो गयी अब निर्मल ,
त्रिभुवन में ब्रह्म ही ब्रह्म दिखा ||
श्लोक क्र. [ 71 ]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
हिंदी काव्य भावानुवाद ..
डॉ.ओ.पी.व्यास
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