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6 अक्तू॰ 2017

हे शारद श्री शरद पूर्णिमे, करूं आपका स्वागत |.....डॉ.ओ.पी.व्यास

[ 296 ]...शरद पूर्णिमा पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ...शरद पूर्णिमा पर दो कविताएँ डॉ.ओ.पी.व्यास

  •  प्रथम कविता का भाव गुरु देव रविन्द्र नाथ टैगोर की नोबल पुरस्कार प्राप्त पुस्तक गीतांजली से है|
  • द्वीतीय कविता का  भाव  भर्तृहरि वैराग्य शतक से लिया गया है ...


प्रथम कविता ...

शरद पूर्णिमा 
श्री शरद पूर्णिमे, करूं आपका स्वागत |
पूर्ण विश्व को देने  आईं आप   व्यथा  से राहत ||
स्वच्छ धुले जंगल पर्वत हैं, इस वर्षा के जल से |
दमक रहे हैं, झल मल, झल मल, विद्युत् द्युति, झल मल से ||
वन में कुसुम, मालती बिखरे, फैलाते   उजियाला|
माथे मुकुट श्वेत हिमगिरि का, जड़ा   शिशिर    मणि वाला ||
मन  मराल, धरती पर आने को , लगता है तत्पर |
मधुर, मधुर वीणा पर गूंजे, आज  मधुर  सुंदर स्वर ||
उधर   देखिये   कुछ  किसान, गीत    मधुर   गाते हैं |
नए धान की, मन्जरिओं के , भर   डाले   लाते    हैं ||

उधर  मधुर ,गीत गातीं हुई  आईं ग्राम  बालाएं |

जिनने पुष्प शैफाली  आदि,की पहनीं मालाएं |||
 पूर्ण  विश्व में शान्ति आए, आज यही है चाहत|
हें शारद श्री शरद पूर्णिमे, करूं आपका स्वागत||  
[296][ प्रथम ]..
हें शारद श्री शरद  पूर्णिमे , करूं आपका स्वागत | डॉ.ओ.पी.व्यास                        

                                          

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद