[ 296 ]...शरद पूर्णिमा पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएं ...शरद पूर्णिमा पर दो कविताएँ डॉ.ओ.पी.व्यास
- प्रथम कविता का भाव गुरु देव रविन्द्र नाथ टैगोर की नोबल पुरस्कार प्राप्त पुस्तक गीतांजली से है|
- द्वीतीय कविता का भाव भर्तृहरि वैराग्य शतक से लिया गया है ...
प्रथम कविता ...
शरद पूर्णिमा
श्री शरद पूर्णिमे, करूं आपका स्वागत |
पूर्ण विश्व को देने आईं आप व्यथा से राहत ||
स्वच्छ धुले जंगल पर्वत हैं, इस वर्षा के जल से |
दमक रहे हैं, झल मल, झल मल, विद्युत् द्युति, झल मल से ||
वन में कुसुम, मालती बिखरे, फैलाते उजियाला|
माथे मुकुट श्वेत हिमगिरि का, जड़ा शिशिर मणि वाला ||
मन मराल, धरती पर आने को , लगता है तत्पर |
मधुर, मधुर वीणा पर गूंजे, आज मधुर सुंदर स्वर ||
उधर देखिये कुछ किसान, गीत मधुर गाते हैं |
नए धान की, मन्जरिओं के , भर डाले लाते हैं ||
उधर मधुर ,गीत गातीं हुई आईं ग्राम बालाएं |
जिनने पुष्प शैफाली आदि,की पहनीं मालाएं |||
पूर्ण विश्व में शान्ति आए, आज यही है चाहत|
[296][ प्रथम ]..
हें शारद श्री शरद पूर्णिमे , करूं आपका स्वागत | डॉ.ओ.पी.व्यास