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29 अक्तू॰ 2017

[ 306 ] अज्ञात ..वैराग्य शतक ..हरिदास कलकत्ता ...डॉ.ओ.पी.व्यास

10/ 9/ 19 96
[ 306 ] ..अज्ञात ..वैराग्य शतक   पृष्ठ 32
[ हरिदास कलकत्ता 15 / 4 / २० ई .]
नोट ....यह अति सुंदर श्लोक है ... हिंदी काव्यानुवाद सेवा में प्रस्तुत है ..
मूल श्लोक ..
गतम् तत्तारुण्यम तरुणी ह्र्द्यानन्द जनकम ,
विशीर्णा दन्तालि र्निज गति रहो यष्टि शरणम |
जड़ी भूता  दृष्टिः श्रवण रहितं कर्ण युगलम ,
मनोमे निर्लज्ज्म तदपि विषये भ्यःस्पृहयति ||
हिंदी काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास

तरुणिओं के जो हृदय में ,
                 थी कभी आनन्द भरती |
कहां है ? वह अब जवानी ,
             जो कभी हल चल थी करती ||
गिर गयी है दंत पंक्ति |
                    नहीं तन में बची शक्ति ||
चल रहे लकड़ी सहारे |
                          नेत्र बुझ गये हैं हमारे ||
सुन नहीं पाते हैं दोंनों कान  |
                   बेहया मन कर रहा
                          फिर भी विषय का ध्यान ||
                                  रचयिता ..डॉ.ओ.पी.व्यास
{विशेष .. परमात्मा की कृपा से 10 /9/ 19 96 को जब भर्तृहरि शतक का हिंदी काव्यानुवाद कर रहा था अनेक चमत्कार पूर्ण घटनाएँ हुईं थीं उन्हें भी बताने का मन कर रहा है ...मुझे अनेक प्रकाशकों की भर्तृहरि शतक की पुस्तकें सी.डी . आदि प्राप्त हुईं थीं ..उन्हें देने वालों में ...स्वर्गीय  शिव शंकर जी औदीच्य  गुना औदीच्य समाज के अध्यक्ष थे का नाम प्रमुख है ...साथ ही श्रीमान मांगी लाल जी विजयवर्गीय साहब जिन्होंने कुछ केसेट मुझे दीं थीं सभी को मैं ज्ञात अज्ञात सहयोगिओं का आभारी हूँ सभी को बहुत बहुत धन्यवाद |..डॉ.ओ.पी.व्यास }
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद