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श्लोक क्र.[ 8 / 14 ]..
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद ..
[ डॉ.ओ.पी.व्यास ]
अनर्थ की जड़ ?
क्षुधा पीड़ित दीन मुख, बच्चे कलप कर |
मांगते रोटी वे माता से लिपट कर ||
माँ कहां से दे , नहीं घर अन्न का दाना |
जीर्ण साडी ,खींच बच्चे मांगते खाना ||
देख कर ऐंसी दशा , है स्वाभि मानी कौन ?|
" मुझे कुछ दो "-कहे ना ,रह जाए कैंसे मौन ?||
याचना के लिए चाहे , कण्ठ हो सूखा |
भले ही मर जाए ,वह ख़ुद भूख से भूखा ||
स्वाभिमानी पन की सीमा लांघता है वह |
और इन बच्चों की ख़ातिर, मांगता है वह ||
हाय इस अनर्थ की जड़ , कौन है बोलो ?|
वही तो काटोगे तुम , पूर्व में बो लो ||
9/9 / 19 96
मूल श्लोक क्र...[ 8 / 14 ] //
दीना दीन मुखैह सदैव शिशुकेराकृष्टजीर्णाम्बरा
क्रोशदभिः क्षुधितैरन रेनै विधुरा दृश्येत चेद गेहिनी
वान्चाभंगमयेन गद्गदलसत्रुटय द्विलीनाक्षरम
को देहीति वदेत्सव दग्धजठरस्यार्थे मनस्वी जन ||8 ||
अर्थ .
.यदि खाने के लिए कलपते हुए और दीन मुख वाले बच्चों से कपड़ों द्वारा नोची- खसोटी गयी दुखिया अपनी गृहणी न देखी जाय तो कौन ऐसा स्वाभिमानी पुरुष होगा जो इस जले पेट के लिए याचना के व्यर्थ होने के भय से और रुंधे हुए गले के कारण अस्पष्ट अक्षरों से मुझे दो ऐसा कहने के लिए तैय्यार होगा | अर्थात इन सब अनर्थों की मूल ग्रहस्थी है |
स्वर्गीय पूज्य पिताजी श्रीमान कँवर लाल जी बी.व्यास ,स्वर्गीय पूज्य माताजी श्रीमती राम कुँवर बाई व्यास
डॉ.ओ.पी.व्यास
श्लोक क्र.[ 8 / 14 ]..
भर्तृहरि वैराग्य शतक
काव्यानुवाद ..
[ डॉ.ओ.पी.व्यास ]
अनर्थ की जड़ ?
क्षुधा पीड़ित दीन मुख, बच्चे कलप कर |
मांगते रोटी वे माता से लिपट कर ||
माँ कहां से दे , नहीं घर अन्न का दाना |
जीर्ण साडी ,खींच बच्चे मांगते खाना ||
देख कर ऐंसी दशा , है स्वाभि मानी कौन ?|
" मुझे कुछ दो "-कहे ना ,रह जाए कैंसे मौन ?||
याचना के लिए चाहे , कण्ठ हो सूखा |
भले ही मर जाए ,वह ख़ुद भूख से भूखा ||
स्वाभिमानी पन की सीमा लांघता है वह |
और इन बच्चों की ख़ातिर, मांगता है वह ||
हाय इस अनर्थ की जड़ , कौन है बोलो ?|
वही तो काटोगे तुम , पूर्व में बो लो ||
9/9 / 19 96
मूल श्लोक क्र...[ 8 / 14 ] //
दीना दीन मुखैह सदैव शिशुकेराकृष्टजीर्णाम्बरा
क्रोशदभिः क्षुधितैरन रेनै विधुरा दृश्येत चेद गेहिनी
वान्चाभंगमयेन गद्गदलसत्रुटय द्विलीनाक्षरम
को देहीति वदेत्सव दग्धजठरस्यार्थे मनस्वी जन ||8 ||
अर्थ .
.यदि खाने के लिए कलपते हुए और दीन मुख वाले बच्चों से कपड़ों द्वारा नोची- खसोटी गयी दुखिया अपनी गृहणी न देखी जाय तो कौन ऐसा स्वाभिमानी पुरुष होगा जो इस जले पेट के लिए याचना के व्यर्थ होने के भय से और रुंधे हुए गले के कारण अस्पष्ट अक्षरों से मुझे दो ऐसा कहने के लिए तैय्यार होगा | अर्थात इन सब अनर्थों की मूल ग्रहस्थी है |
स्वर्गीय पूज्य पिताजी श्रीमान कँवर लाल जी बी.व्यास ,स्वर्गीय पूज्य माताजी श्रीमती राम कुँवर बाई व्यास
डॉ.ओ.पी.व्यास