30 4 .
श्लोक क्र. [ 7]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
प्रथम ..
उदित हुआ सूरज , फिर डूबा ,त्यों ही होता जीवन क्षीण |
जान नहीं पड़ता है हमको , कामों में रहते तल्लीन ||
जरा व्याधि जीना और मरना देख रोज नहीं डरते |
मोह मयि मदिरा प्रमाद की , पी उन्मत्त हुए फिरते ||
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द्वितीय ...
उदय अस्त सूरज का होता ,त्यों ही होता जीवन क्षीण |
जान नहीं पड़ता है क्योंकि विषयों में रहते तल्लीन ||
जरा व्याधि मरना और जीना , देख रोज़ फिर भी ना डरें |
मोह मयि मदिरा प्रमाद की ,पी उन्मत्त हुए विचरें ||
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श्लोक क्र. [ 7]
भर्तृहरि वैराग्य शतक
प्रथम ..
उदित हुआ सूरज , फिर डूबा ,त्यों ही होता जीवन क्षीण |
जान नहीं पड़ता है हमको , कामों में रहते तल्लीन ||
जरा व्याधि जीना और मरना देख रोज नहीं डरते |
मोह मयि मदिरा प्रमाद की , पी उन्मत्त हुए फिरते ||
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द्वितीय ...
उदय अस्त सूरज का होता ,त्यों ही होता जीवन क्षीण |
जान नहीं पड़ता है क्योंकि विषयों में रहते तल्लीन ||
जरा व्याधि मरना और जीना , देख रोज़ फिर भी ना डरें |
मोह मयि मदिरा प्रमाद की ,पी उन्मत्त हुए विचरें ||
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