श्लोक क्र[ 5 ]
धनिकों की प्रशंसा का पाप ?
भर्तृहरि वैराग्य शतक श्लोक क्र[ 5 ]
[काव्यानुवाद डॉ. ओ.पी.व्यास ]
कमल के पत्र पर ऐंसे,पड़े जल विन्दु के जैंसे |
बचा कर ,प्राण, क्षण भंगुर ,किये हैं काम,क्या? कैंसे ?||
नहीं सोचा कि क्या ? करना ,या फिर नहीं करना|
धन मद से चूर धनिकों के ,हमने सामने अक्सर|
कहां हम पाप से चूके,स्वयं उनकी प्रशंषा कर||
4/२/1997 मंगलवार
भर्तृहरि वैराग्य शतक
श्लोक क्र[ 5 ]
अमीषां प्राणानाम तुलित -बिसिनी -पत्र-पयसाम
कृते कि नास्माभिविगलितं -विवेकेव्यवसितम |
यदाढया नामग्रे द्रविणमद -निःसंगमन सा
कृते वीत्व्रीडैर्निज -गुण कथा -पातकमपि ||
अर्थ ...
कर्तव्य -अकर्तव्य के विवेक से शून्य होकर हमने पद्मपत्र पर पड़े जल के समान चंचल इन प्राणों की रक्षा के लिए क्या क्या नहीं किया ? अर्थात सारे दुष्कर्म किये | यहाँ तक कि धन के मद में चूर धनिकों के सामने निर्लज्ज हो कर अपना गुण गान करने का पाप भी हमने किया |