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21 सित॰ 2017

श्लोक क्र [ 4 ] दुर्जन की सेवा करें ,सुनते रहें कुवाक्य | मन में तो रहते उदास ,और ऊपर ऊपर हास्य ||...डॉ.ओ.पी.व्यास

[ श्लोक   क्र  4  ] भर्तृहरि वैराग्य शतक     [काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास ]
 दुर्जन की सेवा ?
दुर्जन की सेवा करें , सुनते रहें कुवाक्य |
मन में तो रहते  उदास,और  ऊपर , ऊपर हास्य ||
ऊपर   ऊपर   हास्य, मगर  भीतर हम  रोते |
 हैं  हत बुद्धि , हाथ जोड़े   हम  पीछे होते ||
          इस आशा तृष्णा के ही  कारण , 
जीवन  हुआ मरण |
                                        धन के मद से चूर मिले,जो आज हमें दुर्जन ||


मूल श्लोक क्र [ 4 ] ...
खलालाप सोढा कथमपि तदाराधनपरै, निग्र्ह्यान्तर्बाष्पम हसितमपि शून्येन मनसा |
कृतो वित्तस्तम्भ प्रतिहतधियामन्जलिरपि, त्वमाशे मोघाशे किमपरमतो नरतयसि माम ||[ 4 ]
अर्थ ...
अपनी स्वार्थ सिद्धि हेतु मैंने दुर्जनों के दुर्वचन और उनके आराधकों के उपहास बड़ी कठिनाई से भीतर के आंसूओं को रोकते हुए सूने मन से सहता रहा ,और धन के मद से जड़ीभूत बुद्धि वाले लोगों के सामने हाथ जोड़ कर खड़ा रहा | हें हताश तृष्णा तू मुझे इससे अधिक और क्या नचाएगी |
                     

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद