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22 सित॰ 2017

श्लोक क्र [ 6 ] भर्तृहरि वैराग्य शतक काव्यानुवाद ..देवों वाले गुण थे हम में ,पर देव नहीं बन पाए | ...डॉ.ओ.पी.व्व्यास ...

               भर्तृहरि वैराग्य शतक
       [ काव्यानुवाद श्लोक क्र [ 6 ] ..डॉ.ओ.पी.व्यास ]
 देवों वाले गुण ?
देवों वाले गुण थे हम में , पर देव नहीं बन पाए |
नाम के  दैवीय गुण थे ,पर ,नहीं आचरण  लाये ||
हम थे क्षमा शील ,क्यों कि थे असमर्थ, कमजोर |

क्षमा न करते तो क्या करते ,पिटते होता भोर ||
सुख, और  चैन भी घर के सारे ,हमने भैय्या त्यागे l
कमा नहीं पाते थे हम, सो, छोड़ के घर को भागे ||
कहने भर के  संतोषी थे, क्योंकि सदा रहे  मजबूर |
कमा  नहीं पाते थे भैय्या, इसी से खट्टे रहे अंगूर||
शीत, वायु,आतप के कष्ट भी, करते रहे हम धारण |
इसलिए नहीं कि तपस्वी थे हम, निर्धनता के कारण ||
ध्यान मग्न भी रहे रात दिन, ध्यान किया पर धन का |
ध्यान कभी भी किया नहीं पर,शम्भु युगल चरण  का ||
इन दैवीय गुण का मतलब अब , कौन हमें समझाये |
नाम के दैवीय गुण थे हम पर, पर देव  नहीं बन पाए ||
                                                                    21 / 3/1999
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श्लोक क्र. [ 6 ]..
.क्षान्तं न क्षमया गृहोचितसुखं त्यक्तं न संतोषत
सोढादुसहशीतवाततपनक्लेशा न तप्तं तप |
ध्यातं वित्तमहर्निश नियमित प्राणेंरन  शम्भो पदम्
तत्तत्कर्म कृतं यदेव मुनिभिस्तैस्तै फ्लैर्वन्चिता ||
भावार्थ ...
हमने वास्तविक क्षमा भाव से क्षमा नहीं किया, संसार  के विविध सहजलभ्य सुखों की तुच्छता समझ कर संतोष पूर्वक उनका त्याग नहीं किया , वल्कि मजबूरी में सहन किया कठोर ठंड , हवा , धूप आदि के  कष्ट सहन किये , परन्तु चान्द्रायण आदि तप में नहीं तपे, दिन- रात धन का चिंतन किया, परन्तु संयमित प्राणों से महादेव शिव के चरणों का ध्यान नहीं किया, मुनियों द्वारा जो भी किये  जाते  हैं, वे सारे कर्म हमने किये , परन्तु उचित भाव न होने के कारण उन उन कर्मों के फलों से हम वंचित रह गये |
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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद