भर्तृहरि नीति शतक - श्लोक क्र.[97 ]
आकृति से फल होय नहीं, ना कुल, शील से होय|
विद्या, भाव, स्वभाव और सेवा, वृथा, व्यर्थ सब कोय||
पूर्व जन्म कृत तप से सिंचित, आते काम हैं कर्म|
वृक्ष समान कर्म फल देते, समझो यह है मर्म||
श्लोक क्र.[ 97 ]
काव्यानुवाद ..डॉ.ओ.पी.व्यास
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