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28 नव॰ 2016

[ 96 ]'''नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही तुमको बान्म्बार है |...

भर्तृहरि नीति शतक काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी व्यास

नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है |
[ 1 ]
कर्म ने ब्रम्हा की नियुक्ति की, जैंसे कोई कुम्हार है|| 
बड़ा भाण्ड ब्रह्मांड बनाया, ब्रम्हा को उसमें बैठाया||
ब्रम्हा उसमें बैठे बैठे, स्रष्टि करें तैयार हैं|
नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है ||
[ 2 ]
भगवन विष्णु स्वयं संकट में, बार बार फंसते झंझट में||
आना पड़ता है धरती पर, लेते दश अवतार हैं |
नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है ||
[ 3 ]
महादेव शिव खप्पर ले कर, भिक्षा हेतु हो गये तत्पर ||
जिनके पास हैं श्री गंगा जी, गले नाग के हार हैं |
नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है ||
[ 4 ]
सूर्य सरीखे अति तेजस्वी, पाई परिचारक की पदवी ||
भ्रमण गगन में करना पड़ता, उनको बारम्बार है |
नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है ||
[ 4 ]
ब्रम्हा, विष्णु, शिव, सूर्य सरीखे, कर्मानुसार बर्तना सीखे ||
सभी करें अपने कार्यों को, सब अपने कर्मानुसार हैं |
नमस्कार हें कर्म तुम्हें ही, तुमको बारम्बार है ||[ 96 ]
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काव्यानुवाद ....डॉ.ओ.पी. व्यास

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद