63.......
सदा विपत्ति में धैर्यवान हो |
अभ्युदय में क्षमा वान हों ||
वाक्पटु हों सभा सदों में |
पराक्रमी हों जो युद्धों में ||
यश में जिन की होती अभिरुचि |
शास्त्र श्रवण आसक्ति , और शुचि ||
यह सब गुण स्वाभाविक जिनको |
कोटि प्रणाम महात्मा उनको ||
[ 63 ]....
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सदा विपत्ति में धैर्यवान हो |
अभ्युदय में क्षमा वान हों ||
वाक्पटु हों सभा सदों में |
पराक्रमी हों जो युद्धों में ||
यश में जिन की होती अभिरुचि |
शास्त्र श्रवण आसक्ति , और शुचि ||
यह सब गुण स्वाभाविक जिनको |
कोटि प्रणाम महात्मा उनको ||
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