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8 अक्तू॰ 2016

61 ....मृग खाते हैं घास ,करें जंगल में जाकर वास , शिकारी फिर भी मारें हैं | मछली पीती है पानी ,करे है नहीं किसी की हानी ,मारते पर मछुहारे हैं ||............


मृग खाते हैं घास , करें हैं वे जंगल में वास, शिकारी फिर भी मारें हैं |

मछली पीती हैं पानी, करे है नहीं किसी की हानि , मारते पर मछुआरे हैं ||

होते हैं शत्रु अकारण, करते जो दुर्जनता धारण , मरें सज्जन बेचारे हैं |

रखें सज्जन से निशि दिन द्वेष , देते रहते हर दम क्लेश , ये जग के दुर्जन सारे हैं ||






भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद