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6 जन॰ 2013

वसंती हवाएँ कविता ...कनाडा यात्रा के संस्मरण

Mon, 24 January, 2011 10:21:38 PM  Reply of mail 24/1/2011.Monday.-From: DrOP Vyas   
प्रिय सभी ,
समाचार प्राप्त हुए, आपके समाचार के अनुसार सौ .प्रेरणा कह रही हैं ...''... सौ. नित्या को भी कविता करना आ गयी है, क्योंकि आपने मौसम का वर्णन सुंदरता से किया है, ......
बसंती हवाएँ  चलने लगी हैं,
 मौसम खुशनुमा हो गया है ''
*वास्तव में जब हम हृदय से लिखते हैं ...वह काव्य है। संस्कृत में  ...'' रसात्मकम वाक्यम हि काव्यम '' ...
यहाँ आज तापक्रम -19 है । पर धूप निकलने से अच्छा लग रहा है । ...
इसी बात को खिदमत में यूं  अर्ज़ किया जा सकता है ... 
''आज बरफ है गिर रही चारों तरफ सफ़ेद । 
शायद ऐंसे ही मौसम में लिखे गए थे वेद ॥
ऋषी, मनीषी  और तपस्वी, गए थे पर्वत राज [हिमालय ] । 
 हम हैं खुश किस्मत वह मौसम, हम को मिल गया आज ॥ 
ऋषी, मनीषी, और तपस्वी करते वहाँ थे तप [वरशिप ]
 हम भी यहाँ हीटिंग सिस्टम में बैठे करते जप ॥
पढ़ें श्याम को रामायण, प्रात: सुनें भजन ।
 मानो हम सेवा निव्रत  [रिटायर्ड ],  बैठे लेते पेंशन॥
बहुत बहुत स्नेह हमारा पीहू, कूहू, देव । 

अगर पसंद आएँ कुछ बातें उन को कर लो सेव ॥''
...सभी को धन्यवाद । 
सोमवार 24 जनवरी 2011, समय प्रात: 11
 डॉ .ओ .पी.व्यास ब्रोंपटन कनाडा से ....

*Actually When we Write some thing, by heart (dil)  ,.it is Poetry. In सी . एन . टॉवर के पास चलती फिरती होटल टोरेन्टो कनाड़ा 

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद