Mon, 24 January, 2011 10:21:38 PM Reply of mail 24/1/2011.Monday.-From: DrOP Vyas
प्रिय सभी ,
समाचार प्राप्त हुए, आपके समाचार के अनुसार सौ .प्रेरणा कह रही हैं ...''... सौ. नित्या को भी कविता करना आ गयी है, क्योंकि आपने मौसम का वर्णन सुंदरता से किया है, ......
बसंती हवाएँ चलने लगी हैं,
*वास्तव में जब हम हृदय से लिखते हैं ...वह काव्य है। संस्कृत में ...'' रसात्मकम वाक्यम हि काव्यम '' ...
यहाँ आज तापक्रम -19 है । पर धूप निकलने से अच्छा लग रहा है । ...
इसी बात को खिदमत में यूं अर्ज़ किया जा सकता है ...
''आज बरफ है गिर रही चारों तरफ सफ़ेद ।
शायद ऐंसे ही मौसम में लिखे गए थे वेद ॥
ऋषी, मनीषी और तपस्वी, गए थे पर्वत राज [हिमालय ] ।
हम हैं खुश किस्मत वह मौसम, हम को मिल गया आज ॥
ऋषी, मनीषी, और तपस्वी करते वहाँ थे तप [वरशिप ]।
हम भी यहाँ हीटिंग सिस्टम में बैठे करते जप ॥
पढ़ें श्याम को रामायण, प्रात: सुनें भजन ।
मानो हम सेवा निव्रत [रिटायर्ड ], बैठे लेते पेंशन॥
बहुत बहुत स्नेह हमारा पीहू, कूहू, देव ।
...सभी को धन्यवाद ।
सोमवार 24 जनवरी 2011, समय प्रात: 11
डॉ .ओ .पी.व्यास ब्रोंपटन कनाडा से ....
*Actually When we Write some thing, by heart (dil) ,.it is Poetry. In सी . एन . टॉवर के पास चलती फिरती होटल टोरेन्टो कनाड़ा