[ 56 ]....
कण्टक
सात शल्य [ तीर ] से, मेरे मन को चुभते हैं |
रात दिवस वह मुझको, आकुल , व्याकुल करते हैं ||
दिन का धूमिल चन्द्र, गलित यौवन नारी का |
कमल विहीन सरोवर, मूर्ख पुरुष प्यारी का ||
लोभी होवे स्वामी,बड़ी है ख़ामी ,सेवक भूखे मरते हैं |
कण्टक सात शल्य से,मेरे मन को चुभते हैं |
रात दिवस वे मुझको,आकुल , व्याकुल करते हैं ||
सबसे बड़ा है काँटा,सज्जन की होती है दुर्गति |
उससे बड़ा है राज भवन में, घुस गया कोई दुर्मति ||
यह सातों ही कांटे,निशि दिन , मन को मथते हैं |
कण्टक सात शल्य से,मेरे मन को चुभते हैं |
रात दिवस वे मुझको, आकुल व्याकुल करते हैं ||
काव्यानुवाद...डॉ.ओ.पी.व्यास ................
................
रात दिवस वह मुझको, आकुल , व्याकुल करते हैं ||
दिन का धूमिल चन्द्र, गलित यौवन नारी का |
कमल विहीन सरोवर, मूर्ख पुरुष प्यारी का ||
लोभी होवे स्वामी,बड़ी है ख़ामी ,सेवक भूखे मरते हैं |
कण्टक सात शल्य से,मेरे मन को चुभते हैं |
रात दिवस वे मुझको,आकुल , व्याकुल करते हैं ||
सबसे बड़ा है काँटा,सज्जन की होती है दुर्गति |
उससे बड़ा है राज भवन में, घुस गया कोई दुर्मति ||
यह सातों ही कांटे,निशि दिन , मन को मथते हैं |
कण्टक सात शल्य से,मेरे मन को चुभते हैं |
रात दिवस वे मुझको, आकुल व्याकुल करते हैं ||
काव्यानुवाद...डॉ.ओ.पी.व्यास ................
................