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तुम सुनो पपीहे , सावधान |
सुनो बात मेरी , करो समाधान ||
हैं मेघ , गगन में , बहुतेरे |
सब ना समान , तू क्यों ? टेरे ||
कुछ व्यर्थ करें , गर्जन ,तर्जन |
कुछ ही करते मन को हर्षण ||
कुछ तो केवल सन्तप्त करें |
कुछ वर्षा करके तृप्त करें ||
इसलिए बात सुन रे चातक |
हर कहीं , मांगना , है घातक ||
जिसको भी देखे , दीन ना बन |
मन वाणी से तू हीन ना बन ||
10/8/ 1996
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तुम सुनो पपीहे , सावधान |
सुनो बात मेरी , करो समाधान ||
हैं मेघ , गगन में , बहुतेरे |
सब ना समान , तू क्यों ? टेरे ||
कुछ व्यर्थ करें , गर्जन ,तर्जन |
कुछ ही करते मन को हर्षण ||
कुछ तो केवल सन्तप्त करें |
कुछ वर्षा करके तृप्त करें ||
इसलिए बात सुन रे चातक |
हर कहीं , मांगना , है घातक ||
जिसको भी देखे , दीन ना बन |
मन वाणी से तू हीन ना बन ||
10/8/ 1996
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