२८ ....
उत्तम पुरुष न्याय प्रिय होते ,
पुरुषों में अति श्रेष्ठ |
घोर विपत्ति में भी करते ,
कार्य ना कोई नेष्ठ ||
याचन करते नहीं कभी वे ,
दुष्ट पुरुष से |
जाते कभी ना द्वार
अल्प धनवान सुह्र्द के ||
जाय ना गौरव मान , भले ही ,
निकलें उनके प्राण |
किसने उन्हें सिखाया ,व्रत ये ,
चलना धार कृपाण ||
२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२२
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उत्तम पुरुष न्याय प्रिय होते ,
पुरुषों में अति श्रेष्ठ |
घोर विपत्ति में भी करते ,
कार्य ना कोई नेष्ठ ||
याचन करते नहीं कभी वे ,
दुष्ट पुरुष से |
जाते कभी ना द्वार
अल्प धनवान सुह्र्द के ||
जाय ना गौरव मान , भले ही ,
निकलें उनके प्राण |
किसने उन्हें सिखाया ,व्रत ये ,
चलना धार कृपाण ||
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