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श्लोक क्र . 4
मणि जो दबी मगर के मुख में ,
सम्भव निकले किए प्रयास |
गहन सिंधु की ऊंची लहर
तैर पार हो जाएं काश ||
शिर के ऊपर सम्भव रख लें ,
क्रुद्ध भले ही विषधर नाग |
किसी वस्तु पर टिका हुआ मन ,
मगर मूर्ख कर सके ना त्याग || [ 4 ]
श्लोक क्र . 4
मणि जो दबी मगर के मुख में ,
सम्भव निकले किए प्रयास |
गहन सिंधु की ऊंची लहर
तैर पार हो जाएं काश ||
शिर के ऊपर सम्भव रख लें ,
क्रुद्ध भले ही विषधर नाग |
किसी वस्तु पर टिका हुआ मन ,
मगर मूर्ख कर सके ना त्याग || [ 4 ]