गोस्वामी तुलसी दास जी कृत श्री राम चरित मानस के बाल काण्ड, प्रथम श्लोक का भावानुवाद .डॉ. ओ. पी. व्यास गुना म.प्र.
मूल श्लोक- वर्णानामर्थसंघानाम रसानाम छन्दसामपि .......
अक्षरों, अर्थ समूहों के, रसों, छंदों, मंगलों के कर्ता,
वंदन है मातु सरस्वती, वंदन गणेश जी जग भर्ता।
वंदन श्रद्धा विश्वास रूप, पितु मातु भवानी, शंकर हैं,
जिनके कारण सिद्धों को दिखें, अंतर में स्थित ईश्वर हैं।
वंदन हैं, नित्य बोध युक्त, गुरू जो प्रत्यक्ष ही शंकर हैं,
जिनके आश्रित हो, वक्र चन्द्र, पूजित हुआ लोक, चराचर हैं।
सियाराम गुणों के कानन में, निशिदिवस करें हैं जो विचरण,
उन वाल्मीक
कवीश्वर और हनुमंत कपीश्वर को वंदन॥
जो हैं विशुद्ध
विज्ञानं युक्त, है बार बार उनको वन्दे।
इन दोंनों के श्री चरणों में, ध्यान सदा मेरा मन दे॥
उत्पत्ति, स्थिति और संहारक, क्लेशों की जो, हरने वालीं॥
वे श्री राम वल्लभा
सीता जी ,जो सर्व श्रेय करने वालीं,
उन सीता माँ के श्री चरणों में, नत मस्तक मेरा बार बार॥
हे माता, कृपा करो
हम पर,तुम्हें बार बार है नमस्कार।
जिनकी माया क वशीभूत, सम्पूर्ण विश्व ब्रह्मादि देव॥
सारे ही असुर भी जिनके वश, उनके चरणों को रहे सेव।
यह द्रश्य जगत जो सत्य लगे, वह उन प्रभु की ही सत्ता है॥
ज्यों भ्रम में रस्सी, सर्प दिखे, वैंसी ही प्रभु महत्ता है।
भव सागर से तरने के लिए नौका वत जिन के युगल चरण॥
सब कारण के कारण जो प्रभु ,उन राम ईश हरि को वंदन ।
कई एक पुराण, निगम, आगम, वेद, तंत्र, रामायण में॥
और भी जो कुछ प्राप्त हुआ, अन्यत्र हमें पारायण में॥
स्वान्तः सुखाय इस राम कथा की तुलसी ने की है रचना।
भाषा अत्यंत मनोहर है, अति सुंदर इस का क्या कहना ॥
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