.शिव महिम्न स्तोत्र .
.डॉ.ओ.पी.व्यास गुना म.प्र.
हे त्रिलोचन, सिंधु से , घोर विष, निकाला हलाहल ।
देव , दानव किसी को जब मिला कोई नहीं ह्ल ॥
पूर्ण जब संसार के विध्वंश का भय हो गया ।
नाश असमय विश्व का होना ही जब तय हो गया ॥
तब आपने ही हे महेश्वर काल विष का पान कर ।
रक्षा करी संसार की विध्वंश का ही ध्यान कर ॥
नील क्ंठेश्वर प्रभु का नाम तब से पड़ गया ।
पर्याय में शिव नाम के जो मोतीओं सा जुड़ गया ॥
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