भर्तृहरि नीति शतक
श्लोक क्र 85
काव्यानुवाद ...डॉ.ओ.पी.व्यास
वृद्धि और क्षय का कारण ,
है मनुष्य का भाग्य |
कभी आय दुर्भाग्य तो ,
कभी आय सद भाग्य ||
जैसे सर्प पिटारी में है ,
त्याग के जीवन आशा |
शिथिल क्षुधा से इन्द्रिय सारी ,
मन में घोर निराशा ||
तभी रात्रि में एक चूहे ने ,
किया पिटारी छेद |
भूखे सर्प के मुख में आया ,
नहीं बहाया स्वेद ||
तब भक्षण किया सर्प ने चूहा ,
चल दिया हुआ प्रसन्न |
देखो कैंसे वृद्धि और क्षय ,
भाग्य से पाते जन ||
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