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4 अक्तू॰ 2016

दुर्जन स्वभाव के जो रहते, गुणहीन सज्जनों को कहते ||.54 ||


दुर्जन स्वभाव के जो रहते, गुण हीन सज्जनों को कहते ||

गुणिओं में दिखते दोष उन्हें, सज्जनता से मतलब ना जिन्हें ||

हर जगह दोष ही दोष दिखें, वे गुणवानों में अवगुण परखें ||

वृत वालों को बोलें दम्भी, लज्जा शीलों को जड़ बुद्धि |

पवित्र चित्त जिनके रहते, उन सबको यह कपटी कहते ||

निर्दयी कहें ये वीरों को , कहें हीन बुद्धि का मुनिओं को ||

होते जो तेजवान व्यक्ति, उन्हें कहें घमण्डी और खब्ती ||

वक्ता को बोलें बकता है, पागल है बक बक करता है ||

कर लिया चित्त जिनने स्थिर, ये कहते उन्हें आलसी नर ||

मृदुभाषी और मधुर व्यक्ति, कर सकते उनकी नहीं तृप्ति ||

दुर्जन उनसे इतना चिढ़ते , उन्हें दीन हीन निर्धन कहते ||

इस तरह गुणी का हर एक गुण , दुर्जन को दिखता है दुर्गुण ||

कहें भर्तृहरि सुनो ''व्यास '', दुर्जन के जाओ नहीं पास ||

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भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद