स्व॰ श्री मख्खन लाल व्यास
(काका जी)
को
काव्यांजली
स्वर्गीय मख्खन काका जी हमें आते बहुत हैं याद ।
अच्छों की यादें हरदम आतीं, जाने के बाद ॥[1]
छोड़ दिया था कभी भदौरा, कुछ हो गया विवाद।
बरसों कुछ भी हुआ, नहीं कोई फिर संवाद ॥[2]
गुम हो कर फिर मिले अचानक, प्रभु को धन्यवाद ।
प्रकट अचानक हुए बने, इंदौर के दामाद ॥[3]
छोड़ दिया भगवान के हाथों, कुछ ना किया ,प्रतिवाद ।
फिर ज़िंदगी की फिल्म चल पड़ी,
खुशहाल बहुत ही शाद [बहुत बढ़िया ]॥ [4]
पढे ,बढ़े थे रहे बरेली, घर से बहुत ही दूर ।
खूब पढे और आए अचानक, हो गए प्रकट हजूर ॥ [5]
आयीं खुशियाँ लौट, परिवार में, भरपूर ।
बच्चे पढे ,बढ़े और बस गए, जा कर के इंदूर [इंदौर ]॥ [6]
सुख के क्षण थोड़े से आए, हाय, नियति, हे क्रूर ।
हुए अचानक किधर हैं गुम वे, कर खुशिओं को चूर ॥ [7]
पर लगता है, गए कहीं ना ,कहीं भी, हम से दूर ।
अभी आएंगे मुसकुराते ,बरसाते अपना नूर ॥ [8]
"व्यास " अश्रु अंजलि, काका को, देखे, गज़ब के लक्षण ।
सच में,सार रूप थे ,जग में ,नाम ,सार्थक ,"मख्खन "॥[9]
...डॉ. ओ. पी.व्यास गुना म .प्र .भारत- ओम शान्ति 18 .2 .2011 ब्रेंप्टन ओटांरीओ कनाडा से ॥