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8 अक्तू॰ 2017

[ 3 0 1 ] विषय परित्याग विडम्बना... न संसारोत्पन्न...

[ 3 0 1 ] [ 11/3  ] ...न  संसारोत्पन्न ...
विषय- परित्याग -विडम्बना ...
[ 1 ] प्रथम ...
कल्याण करते नहीं ,संसार के जो चरित्र हैं |

स्वर्गादि भी भय रूप हैं ,परिणाम कर्म पवित्र हैं ||
जब पुण्य होते क्षीण , तो स्वर्ग से फिर पात हों |
भय रूप हैं , स्वर्गादि भी , जो कर्म फल की बात हों ||
करते बड़े जो पूण्य हैं ,उनके समूह  ,समूह  से |
दुःख रूप हैं वे अन्त में,संचित विषय के व्यूह से ||[ 11/3 ]
[ २ ]  द्वीतीय ,,,
जो भी हुए हैं पैदा ,वे सब ही मिट गये हैं |
जितने भी थे मनोहर , वे सब सिमट गये हैं ||
यज्ञादि से जो स्वर्ग गये , वे सभी हट गये हैं |
कई इन्द्र बने ,और फिर वे नाम कट गये हैं ||
बीती अवधि जो कर्म की ,पांसे पलट गये हैं |
चिर काल में , संचित ,विषय ,पुण्यों के पट गये हैं ||
दुःख रूप विषय उनको ,फिर चाट  चट गये हैं |
केवल बचे हैं , ज्ञानी ,जो वहां डट गये हैं ||

भृतहरि नीति शतक का काव्यानुवाद